-ज़िंदगी-

गली के माेड़ पर 

गुलमाेहर के नीचे

बारिश की बूंदाे में

खाली पड़े झूलाें में

बीती हुई बाताें में

रूठी हुई रातों में

कभी झराेखे से

कभी देहरी पर

बावरा सा ढूंढ़ता हूँ

ऐ ज़िंदगी तुझे..


-स्वप्न प्रिया

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