-इजाज़त-
"सुबह आँखें खुली ताे सामने की अधखुली खिड़की से प्रकाश की चमकीली किरणें छनकर अंदर आ रहीं थी। इन चमकीली किरणों से अंदाजा लगाया जा सकता था कि आज सूरज आग उगलने वाला है। मैंने अनमने ढ़ंग से मोबाइल उठा कर टाइम देखा। सुबह के पाँच बज रहे थे। आज सिर में बहुत दर्द था। दिल चाह रहा था कि थाेड़ा देर और साेयी रहूँ ना जाऊँ स्कूल। मगर दो दिन पहले हुई महाभारत के बाद घर में अजीब सा माहौल था। घुटन होने लगी थी मुझे इस माहौल से। मैंने तय किया कि आज स्कूल जाने से पहले पापा से साफ साफ बात कर लूँगी। यही सोच मैं बेड से उठी और जल्दी से अलमिरा से कपडे़ निकाल सीधे नहाने चली गई।"
"जब तक मैं तैयार होकर बाहर आयी पाैने छः बज चुके थे। पापा सामने ही साेफे पर बैठे न्यूज पेपर पढ़ रहे थे और मम्मी..मम्मी शायद पूजा घर में थी। मैं जाकर पापा के पास बैठ गयी कुछ देर हिम्मत और लफ्ज़ बटाेरने के बाद मैंने कहा, "पापा मुझे आपकी बात मंजूर है। पापा ने न्यूज पेपर से नजरें हटा पूरा ध्यान मेरी ओर कर दिया। देखा हलकी सी गर्वीली मुस्कान उनके चेहरे पर तैर गयी थी। मैंने कुछ रूक कर कहा, मगर...इतना कहकर कुछ देर चुप रही ताे पापा बैचेनी से बाेले मगर क्या? मैंने कहा, "अब मैं किसी से भी शादी नहीं करूँगी। ना इस मानव से ना ही किसी और से। फिर पापा की तरफ देखते हुए भरे गले से कहा, "पापा अपनी ज़िंदगी पर इतना ताे हक है ना मुझे? आखिरी शब्द कहते कहते मेरी आँखों से झर झर आँसू बह चले और मैं तेज कदमों से अपने रूम में चली आयी।"
"मैं अभी बैठी रो ही रही थी कि माेबाइल की रिंग बज उठी। देखा मानव का फाेन था। मैंने पलकाें में उलझी बूंदाे काे हाथ से पोछा और फाेन उठाया। दूसरी तरफ से मानव की आवाज आयी, हैलाे स्वप्न। मैंने धीरे से कहा, "हैलाे। मेरी आवाज सुनते ही मानव ने पूछा, "क्या हुआ स्वप्न तबियत ताे ठीक है ना तुम्हारी? मैंने कहा, "हमम ठीक हूँ...मानव ने फिर पूछा, "स्वप्न, बात हुई तुम्हारी अंकल से ? मानव के सवाल का जवाब ना देकर मैंने उसे बस इतना कहा, "मानव, क्या हम अभी मिल सकते हैं? मानव ने कहा, "ठीक है मैं तुम्हारा बीच पर इंतजार करूँगा।"
"मैं जल्दी से तैयार हाेकर घर से निकली और स्कूल ना जाकर बीच के लिए आॅटो रिक्शा कर लिया। रास्ते भर साेचती जा रही थी कि क्या कहूँगी मानव से...जिस जवाब का इंतजार वह पिछले तीन साल से कर रहा है। कैसे कहूँगी की मानव मुझे भूल जाओ..पापा नहीं माने। उतरिये मैडम, बीच आ गया। मैं अपने ख़्यालाें से बाहर निकली ऑटाे वाले काे पैसे दिये और बीच की तरफ चल दी।"
"मैंने देखा बीच से थोड़ा दूर लगी बेंच पर बैठा मानव मेरा इंतजार कर रहा था। मैं भी जाकर वहीं बेंच पर बैठ गयी। मानव ने मुझे देख उत्सुकता से पूछा, "हाँ बाेलाे क्या बात है स्वप्न? मैं कुछ बोलती कि मेरी आँखों में उतर आये उमड़ते घुमड़ते बादल देख मानव शायद सब समझ गया था। समझ गया था कि हमारे रिश्ते पर ना की माेहर लग चुकी है। मैं बहुत काेशिश करने के बाद भी कुछ बाेल नहीं पा रही थी...शब्द थे की जम गये थे। मेरी खामाेशी में दबी चीखें शायद उसके कानाें ने महसूस की थी। मानव से मेरी हालत देखी नहीं जा रही थी। कुछ देर वह खामोश रहा। फिर मेरी हालत काे देख बरबस ही उसके मुँह से निकला था..
"आँखों में अश्क
हजार लायी थी
वाे मेरे खत का
जवाब लायी थी"...
"कहते कहते उसकी आँखें भी नम हाे आयी थीं। फिर भी दिल कड़ा कर के मानव ने कहा, "काेई बात नहीं यार, हमारा प्यार किसी रिश्ते का माेहताज नहीं। ये ताे हमेशा रहेगा। आज भी और कल भी। मुश्किल से आँसू पाैछते मैंने कहा, "अब हम नहीं मिलेंगे मानव। मानव ने कहा, "हमम...बस यह कहकर गीली आँखें लिये मैं जाने के लिये पलट गयी और मुड़कर एक बार भी नहीं देखा।"
"वापस घर पहुँची ताे मुझे जल्दी आया देख मम्मी ने पूछा, "क्या हुआ बेटा आज जल्दी आ गयी? मैंने कहा, "हाँ सिर में थाेड़ा दर्द था। कहकर अपने रूम में चली गयी। उस दिन के बाद से एक खामाेशी सी छा गयी थी घर में। अब मैं जरूरत भर ही बातें करती। माँ पापा कुछ पूछते ताे जवाब देती नहीं ताे अपनी तरफ से काेई बात ना करती।"
"एक राेज जब मैं स्कूल से घर पहुँची ताे देखा कुछ लाेग घर पर आये हुए थे। पापा मुझे देखते ही मुस्कुरा कर बाेले,"लीजिये आ गयी हमारी बिटिया। माज़रा समझते मुझे देर ना लगी। मेहमानाें के जाने के बाद मैंने पापा से कहा, "मैं आप लाेगाें को हजार बार कह चुकी हूँ की मुझे अब काेई शादी नहीं करनी फिर क्यूँ आप ये सब कर रहे हैं..? पापा गुस्से में आकर बाेले थे ताे ठीक अगर तू शादी काे तैयार ना हुई ताे फिर तेरा हमसे कोई वास्ता नहीं....फिर जो तेरे जी में आये करियो। इतनी बड़ी बात कह कर पापा गुस्से से अपने कमरे में चले गये। मेरे पास पापा की बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं था। बहुत प्यार करती थी मैं मम्मी पापा से। उनकाे महज़ एक प्यार की खातिर खाेना नहीं चाहती थी। मेरा प्यार इतना स्वार्थी नहीं था। हाँ बाेल दिया था मैंने पापा काे। रिश्ता तय हुआ और कुछ दिन बाद रिंग सेरेमनी भी हाे गयी।"
"धीरे धीरे वक्त खिसकता जा रहा था। और फिर सगाई का दिन भी आ पहुँचा। यह बात मानव के कान तक पहुँच चुकी थी। उसका मैसेज आया था...नयी जिंदगी की ओर पहला कदम मुबारक हाे।"
"सगाई चढ़ाने के लिये गये पापा काे कुछ ही देर में वापस आया देख मम्मी ने पूछा था, "क्या हुआ आ क्यूँ गये? पापा ने कहा ये शादी नहीं हाेगी....। एक नम्बर का कमीना है वाे राेहन। कहते हुए पापा का चेहरा तमतमा गया था। पापा ने बताया जब वह गाड़ी से समान उतरवा रहे थे तब उन्होने राेहन को किसी लड़की से यह कहते सुन लिया था की ये शादी तो वह सिर्फ़ घरवालाें के लिये कर रहा है, प्यार ताे वह उसी से करता है। रोहन के घरवालों से इस मुद्दे पर बात करने के बाद काफी हंगामा हुआ। और वे ये रिश्ता तोड़ वापिस चले आये थे। इस सब में उनका बहुत नुक्सान हुआ। पर उनको सुकून था कि वे बेटी की ज़िंदगी बर्बाद होने से बचा पाये।"
"मैंने राहत की सांस ली। पापा चाहे मेरे साथ कितने भी कठाेर क्यूँ ना हुए हाें पर वाे मुझे खुश देखना चाहते थे। मेरी पसंद से ना सही अपनी पसंद से ही सही।"
"इस बार किस्मत मुझ पर मेहरबान हुई। फिर साल भर तक शादी के बारे में मुझसे पापा ने काेई बात नहीं की। और इसी बीच मैंने पी.एचडी पूरी कर डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की। देखते देखते पाँच साल और खिसक गये...। काेई खास बदलाव नहीं आया था मुझमें सिवाय इसके की अब मैं कॉलेज में लेक्चरार थी और नाम के आगे डॉ.लग गया था। हाँ, अब मैं पुरानी बातें भूल पापा से बातें करने लगी थी। मम्मी पहले की तरह थी। मम्मी ने मेरे और मानव के रिश्ते काे लेकर कभी काेई विराेध नहीं जताया था।"
"एक राेज सर्दियाें की सुबह करीब पाैने दस बजे मैं कॉलेज पहुँची ताे पता चला मेरा ट्रांसफर मसूरी से आगे एक छाेटे से पहाड़ी गाँव पुराैैला कर दिया गया है। घर लाैट मैंने मम्मी पापा काे अपने ट्रांसफर के बारे में बताया। पापा ने चश्मा उपर करते हुए पूछा था कब जाना है?? मैंने कहा, "इसी महीने की पन्द्रह तारिख काे ज्वाइन करना है। पापा ने कहा, "अरे तीन तारीख ताे आज हाे ही गयी। इतने कम समय में कैसे मैनेज करेगी तू?और रहेगी कहाँ?? सुन मैं परसाे जाके पहले तेरे रहने का इंतजाम कर आता हूँ। इतने तू अपनी पैंकिग करना शुरू कर।"
"पापा, पुराैला के निकल चुके थे और मैंने भी धीरे धीरे अपनी पैकिंग शुरू कर दी थी। सारा सामान पैक हो चुका था बस कपडे़ रह गये थे। मैं अपना बैग लगाने लगी। अलमारी से कपड़े निकालते समय कुछ कपड़े हाथाें से छूट कर नीचे गिर गये थे। मैंने हाथाें में पकडे़ सारे कपड़े बेड पर डाले और जमीन के कपड़े उठाने काे जैसे ही हाथ बढ़ाया ताे कपड़ाें के बीच से झाँकती नारंगी कुर्ती पर मेरी नजर पडी। मैंने धीरे से उसे उठाया और सीने से लगा लिया। ये वाे कुर्ती थी जाे मानव ने उसे उनकी दोस्ती के बाद पडे़ उसके पहले जन्मदिन पर दी थी। वह जानता था कि मुझे नीला रंग पसंद है फिर भी वाे अपनी पसंद की नारंगी कुर्ती ले आया था। कहता था कि उज़ले रंग पहनने से जिंदगी भी उज़ली उज़ली लगती है। तभी माँ कि आवाज आयी। स्वप्न आजा कॉफी पी ले। मैं उस कुर्ती काे बैग में सबसे नीचे रखकर कॉफी पीने चली गयी।"
"कॉफी पीकर वापस आयी ताे देखा ताे एक अरसे बाद मानव का मैसेज था। सच है ना.. किसी को दिल से याद करो तो उस तक आवाज़ जरूर पहुँचती है। मेरे साथ तो ऐसा कई बार हुआ था..जब भी मैं मानव को याद करती तो उसका फोन आ जाता या फिर वो खुद ही आ जाता था मिलने। पुरानी बातें याद कर क्षण भर को होंठो पर मुस्कान तैर आयी थी। मैंने मैसेज खाेल कर देखा ताे लिखा था। इतनी जल्दी भूल जाओगी यकीं ना था। मुझे जन्मदिन विश करना भी बंद कर दिया तुमने। मैसेज पढ़ते हुए आँसू पलकाें से उलझ गये। बडी मुश्किल से मैंने मैसेज टाइप किया.. कैसे हाे मानव ??
दूसरी तरफ से मानव का जवाब आया..
"गली के माेड़ पर
गुलमाेहर के नीचे
बारिश की बूंदाे में
खाली पड़े झूलाें में
बीती हुई बाताें में
रूठी हुई रातों में
कभी झराेखे से
कभी देहरी पर
बावरा सा ढूंढ़ता हूँ
एे जिंदगी तुझे.."
पढ़कर मैं आगे काेई जवाब नहीं दे पायी और फाेन बंद करके खूब राेयी। मैं चाहकर भी मानव काे भुला नहीं पा रही थी। खाली हाेती ताे बहुत याद आता था मानव और उसकी बातें।"
"जबसे पापा गये थे तबसे इन दाे तीन दिन में पापा ने मम्मी को कई बार फोन किया था। वे दोनों बहुत देर तक बातें करते। जब पापा वापस आये ताे मैंने पूछा, "पापा रूम मिल गया क्या? पापा बाेले, "हाँ, सब इंतजाम कर आया हूँ। कुछ भी सामान ले जाने की जरूरत नहीं है। बस अपने कपड़े रख लियाे। मैंने हम्म् में सिर हिला दिया।"
"रात काे मैं पानी पीने काे उठी तो देखा माँ और पापा के बातें करने की आवाजें आ रहीं थीं। मैैंने घड़ी की तरफ देखा रात के ग्यारह बज रहे थे। इतनी देर तक ताे मम्मी पापा कभी जागते नहीं थे। फिर आज काैनसी बातें चल रहीं हैं जाे अभी तक साेये नहीं। खैर, मैं पानी पीकर अपने कमरे में चली आयी। अगले दिन, पापा ने पूछा, "बेटा सब तैयारी हाे गयी? मैंने कहा, "हम्म् पापा। फिर पापा बाेले, कल सुबह गाड़ी वाले काे बाेल दिया है पाँच बजे निकलेंगे हम सब। मैंने आश्चर्य से पूछा, "क्या मम्मी भी साथ चल रही हैं? पापा ने कहा, हम्म्। अगले दिन सुबह हम तीनाे पुराैला के लिये रवाना हुए। दाेपहर करीब एक बजे हम पुराैला पहुँचे।"
"गाड़ी जिस मकान पर जाकर रूकी वह फूलाें से सजा हुआ था। गीत संगीत की आवाजें आ रही थीं। लगता था जैसे किसी की शादी हाे। मैंने पापा से पूछा, "क्या यही मकान है? पापा बाेले,"हम्म। पापा ने इशारे से बताया वाे नीचे वाला कमरा तेरे लिये है। हम सब उतरे और घर के अंदर पहुँचे। कमरा वाकई बहुत अच्छा था। एक डबल बैड पड़ा था। जिस पर साफ सुथरी सुदंर बेड शीट बिछी हुई थी। किचन भी करीने से लगी हुई। काेने में खड़ा फ्रिज, दिवार पर टँगा एल.ई.डी टीवी और कपडे़ रखने के लिए बडी सी अलमिरा। कुल मिलाकार दो कमरों का अच्छा शानदार घर था। मैंने हैरानी से पूछा, "पापा किराया क्या है ?? लगता है आधी सैलेरी मकान के किराये में ही निकल जायेगी। मेरी बात सुन, मम्मी पापा मुस्कुरा दिये। फिर हम सब खाना खा पीकर साे गये।"
"शाम काे करीब पाँच बजे दरवाजे पर किसी ने थाप दी। मम्मी ने दरवाजा खाेला। सामने पीले रंग की कांजीवरम की साड़ी पहने मम्मी की उम्र की एक महिला खड़ी थी। पापा ने देखते ही कहा, "आईये बहन जी,और मुझसे मिलवाते हुए बोले कि यह है मेरी बेटी स्वप्न। पापा ने कहा, "बेटा ये तुम्हारी मकान मालकिन। पापा मेरे कान में फुसफुसाये पैर छुआे बेटा। मैं पैर छूने काे झुकी ताे आँटी ने गले लगा लिया। उन्होंने पूछा, "कमरा कैसा लगा बेटा? मैंने कहा, "जी बहुत अच्छा है। वह मुस्कुरा दी। उन्होंने फिर मुझे जन्मदिन मुबारक हाे बेटा कहा ताे मैंने उनकाे थैंक्यू आँटी कहकर पापा की तरफ सवालियाँ नजराें से देखा.. मेरी हैरानी काे शायद वे भाँप गई थीं। वे बाेली बाताें बाताें में तुम्हारे पापा से पता चला था। कहकर वह चुप हाे गई। थाेड़ी देर की चुप्पी के बाद वे बाेलीं, "आज मेरे छाेटे बेटे की सगाई है आप सभी को शाम सात बजे जरूर आना है, कहकर वे चली गयीं।"
"शाम काे करीब साढ़े सात बजे हम उनके घर पहुँचे। बड़ी चहल पहल थी। मैंने इधर उधर नज़र घुमाई..सारा घर रोशनी से नहाया हुआ था। तभी सारिका जी भी आ गई। मुझे देखते ही वे बोली, "बहुत प्यारी लग रही हो बेटा। फिर वे हमसे बातें करने लगी। तभी काेई आकर बाेला लड़की वाले आ गये... ताे वे चली गयी। हम वहीं पास पड़ी कुर्सीयाें पर बैठ गये।"
"सगाई की रस्म पूरी हुई ताे म्यूजिक शुरू हुआ थोडे नाच गाने के बाद सारिका जी ने म्यूजिक बंद करा दिया। उन्होंने किसी काे इशारे से कुछ समझाया। कुछ ही देर में एक बड़ा सा केक लाकर टेबल पर रखा गया। फिर उन्होंने एनाउंस किया कि आज मेरे बेटे की सगाई के साथ साथ किसी का जन्मदिन भी है। इतना कहकर सारिका जी ने जब मेरा नाम पुकारा, "आओ स्वप्न। मैं हैरान रह गई। फिर उन्होंने मुझे दाेबारा पुकारा, "स्वप्न आ जाओ बेटा, तो मुझे जाना ही पड़ा। मैंने धीरे से सारिका जी से कहा, "इस सब की क्या जरूरत थी आँटी? सारिका जी ने कहा, "बेटा बातें बाद में पहले केक काटाे सब इंतजार कर रहे हैं। उनकी बात सुनकर मैंने केक काटा। मेरे लिये तो सब कुछ सपने जैसा था। मैंने आजतक इस तरह अपना जन्मदिन कभी मनाया ही नहीं था। बहुत खुश थी मैं।"
"केक कटने के बाद मैंने आदतन पापा के कान में धीरे से कहा, "मेरा गिफ्ट कहाँ है पापा? जैसे मैं बचपन में केक काटने के बाद पापा से कहा करती थी। पापा मुस्कुराये और उन्होंने भी आदतन कहा, "जा अपने कमरे में जाकर देख। मैंने कहा, "क्या सच में पापा? पापा ने हमम में सिर हिलाया। मैं उस वक्त बिल्कुल बच्ची बन गयी थी। मुझसे सब्र ही नहीं हुआ और मैं अपने कमरे की तरफ निकल गयी।"
"कमरे पर पहुँच जैसे ही मैंने दरवाजा खाेला सामने पीठ करके काेई खड़ा हुआ था इससे पहले कि मैं कुछ कहती वह पलटा, उसे देख मेरे मुँह से निकला मा... मानव तुम। मानव ने मुस्कुरा कर हैप्पी बर्थ डे स्वप्न कहकर हाथ में पकड़ा बुके मुझे थमा दिया। मैं कुछ कहती या पूछती, मानव बाेला ना, कुछ ना कहाे स्वप्न, और मेरा हाथ पकड़ कर वो मुझे ऊपर अपने घर ले आया। जहाँ सब शायद हमारा ही इंतज़ार कर रहे थे। मानव पापा के पास आकर रूका और बाेला, "अकंल, अगर आपकी इजाज़त हाे ताे क्या मैं हमेशा के लिये स्वप्न काे आपसे माँग सकता हूँ। पापा की आँखों में आँसू थे। उन्होंने मुझे और मानव काे गले लगा कर अपनी इजाज़त दे दी थी।
-©️स्वप्न प्रिया
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